Friday, May 11, 2018

ख़्वाबिदा ज़मीं पर, मकाँ नहीं बनता
धुँए से आसमां, नहीं बनता
कुछ रिवायतें, तोड़ ही दे तो बेहतर है
मुखालफत से, हिन्दोस्तां नहीं बनता
मुसलसल रंजिशों का दौर है ये
सफ़र में कारवाँ नहीं बनता
है वक़्त, खुद को बदल डालो अभी
अब कोई हमज़ुबां नहीं बनता
नए मरासिम के बीज बो डालो
क़ब्र पे, ख़्वाबगाह नहीं बनता

#मुदित (12.05.2018)

ख़्वाबिदा = सपने की
रिवायतें = रिवाज़
मुखालफत = दुश्मनी
मुसलसल = लगातार
हुमज़ुबां = हमारी तरह बोलने वाला
मरासिम = रिश्ते
ख़्वाबगाह = सोने का स्थान/कमरा

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