Friday, May 11, 2018

ख़्वाबिदा ज़मीं पर, मकाँ नहीं बनता
धुँए से आसमां, नहीं बनता
कुछ रिवायतें, तोड़ ही दे तो बेहतर है
मुखालफत से, हिन्दोस्तां नहीं बनता
मुसलसल रंजिशों का दौर है ये
सफ़र में कारवाँ नहीं बनता
है वक़्त, खुद को बदल डालो अभी
अब कोई हमज़ुबां नहीं बनता
नए मरासिम के बीज बो डालो
क़ब्र पे, ख़्वाबगाह नहीं बनता

#मुदित (12.05.2018)

ख़्वाबिदा = सपने की
रिवायतें = रिवाज़
मुखालफत = दुश्मनी
मुसलसल = लगातार
हुमज़ुबां = हमारी तरह बोलने वाला
मरासिम = रिश्ते
ख़्वाबगाह = सोने का स्थान/कमरा

Monday, March 6, 2017

तेरी हर नज़र पे, मेरी इक नज़र है
तेरी हर खबर की, मुझे ही खबर है
तमन्ना उजालों की, है रायगाँ अब
तेरा एक साया, अगर मेरे सर है
तू चाहे इधर है, तू चाहे उधर है
मगर मैं वहां, तू जहाँ है जिधर है
न कमतर किसी से, नहीं तेरा सानी
वो सबकी नज़र है, ये मेरी नज़र है
तेरी दोस्ती ने, सिखाया बहुत कुछ
है मतलब की दुनियाँ, बेगाना शहर है
न दुनियाँ की तरहा, चुराना ये नज़रे
तेरा "राही", तेरे बिना दर-बदर है

#मुदित

Friday, February 24, 2017

तेरी यादों को बिछाना,
तेरी ही यादों को ओढ़ लेना,
साँसों के टूटे तार को,
तेरी खुशबू से जोड़ लेना,
था कभी सिलसिला मुक़म्मल सा,
तेरी जानिब मेरा दौड़ लेना,
अब न तू ही है,
ना सदा कोई,
किसकी खातिर,
सितारे तोड़ लेना,
तेरा इंतज़ार ही मुसलसल है,
रुख क्यूँ हालात से मोड़ लेना,
इक दस्तूर यही बाकी है,
हर दस्तूर को बदस्तूर तोड़ देना

#मुदित (24.02.2017)

Tuesday, February 14, 2017

सुनहरे पल
अक्सर ज़िद्दी हुआ करते हैं
हाँ
देखा है मैंने
और कोशिश भी तो बहुत की
बाँह पकड़कर भी रोका
मगर
रोक न पाया
काश
उन्ही पलों में जी लेता एक ज़िंदगी
वैसे भी बचपन
जात, पात, ऊँच, नीच, तेरा, मेरा
सबसे दूर होता है
सुजल, कोमल, निर्मल, उज्जवल
बाकी तो बस सफ़र है
आखिरी मंज़िल तक पहुचने का

#मुदित

Saturday, February 11, 2017

वक़्त के पन्नों पे लिखी,
उसकी हर बात को मिटा देना
काश मुमकिन होता,
दिल से दर्द की धूल हटा देना
परत दर परत,
दर्द से बोझल हर अहसास
बे-मायने है,
अब मुझको दवा देना

#मुदित
यूँ तो बदल लिया है मैंने
खुद को वक़्त के साथ-साथ
आज भी मगर आँखों में
सपने वही पुराने से हैं
तस्वीर उसके सिवा
ज़हन में दूसरी नहीं बनती
मिटती नहीं अब भी
जो तस्वीर ज़माने से है
क्यूँ याद आते
ज़माने से अब तलक
जो दोस्त अब
बिल्कुल बेगाने से है
जाने क्या बात है
हाथ छोड़ना नहीं चाहता
उसके दिये हुए
कुछ पैमाने से हैं
नींद काफूर होने की
वजाह अब हांसिल हुई
ये आलम उसके
कुछ पल को
लौट आने से है

#मुदित
वो जान लेता,
तो मना लेता उसके सवालों को,
उसूलों के चश्में से,
नहीं देखा जाता इश्क़ वालों को

#मुदित