Saturday, February 11, 2017

यूँ तो बदल लिया है मैंने
खुद को वक़्त के साथ-साथ
आज भी मगर आँखों में
सपने वही पुराने से हैं
तस्वीर उसके सिवा
ज़हन में दूसरी नहीं बनती
मिटती नहीं अब भी
जो तस्वीर ज़माने से है
क्यूँ याद आते
ज़माने से अब तलक
जो दोस्त अब
बिल्कुल बेगाने से है
जाने क्या बात है
हाथ छोड़ना नहीं चाहता
उसके दिये हुए
कुछ पैमाने से हैं
नींद काफूर होने की
वजाह अब हांसिल हुई
ये आलम उसके
कुछ पल को
लौट आने से है

#मुदित

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