Friday, February 24, 2017

तेरी यादों को बिछाना,
तेरी ही यादों को ओढ़ लेना,
साँसों के टूटे तार को,
तेरी खुशबू से जोड़ लेना,
था कभी सिलसिला मुक़म्मल सा,
तेरी जानिब मेरा दौड़ लेना,
अब न तू ही है,
ना सदा कोई,
किसकी खातिर,
सितारे तोड़ लेना,
तेरा इंतज़ार ही मुसलसल है,
रुख क्यूँ हालात से मोड़ लेना,
इक दस्तूर यही बाकी है,
हर दस्तूर को बदस्तूर तोड़ देना

#मुदित (24.02.2017)

Tuesday, February 14, 2017

सुनहरे पल
अक्सर ज़िद्दी हुआ करते हैं
हाँ
देखा है मैंने
और कोशिश भी तो बहुत की
बाँह पकड़कर भी रोका
मगर
रोक न पाया
काश
उन्ही पलों में जी लेता एक ज़िंदगी
वैसे भी बचपन
जात, पात, ऊँच, नीच, तेरा, मेरा
सबसे दूर होता है
सुजल, कोमल, निर्मल, उज्जवल
बाकी तो बस सफ़र है
आखिरी मंज़िल तक पहुचने का

#मुदित

Saturday, February 11, 2017

वक़्त के पन्नों पे लिखी,
उसकी हर बात को मिटा देना
काश मुमकिन होता,
दिल से दर्द की धूल हटा देना
परत दर परत,
दर्द से बोझल हर अहसास
बे-मायने है,
अब मुझको दवा देना

#मुदित
यूँ तो बदल लिया है मैंने
खुद को वक़्त के साथ-साथ
आज भी मगर आँखों में
सपने वही पुराने से हैं
तस्वीर उसके सिवा
ज़हन में दूसरी नहीं बनती
मिटती नहीं अब भी
जो तस्वीर ज़माने से है
क्यूँ याद आते
ज़माने से अब तलक
जो दोस्त अब
बिल्कुल बेगाने से है
जाने क्या बात है
हाथ छोड़ना नहीं चाहता
उसके दिये हुए
कुछ पैमाने से हैं
नींद काफूर होने की
वजाह अब हांसिल हुई
ये आलम उसके
कुछ पल को
लौट आने से है

#मुदित
वो जान लेता,
तो मना लेता उसके सवालों को,
उसूलों के चश्में से,
नहीं देखा जाता इश्क़ वालों को

#मुदित
ज़रूरी नहीं हर शख्स, ज़बाँ का ही रंग दे
इन्कार का एक रास्ता, ख़ामोशी भी तो है

#मुदित
दिल तो चाहता है,
खोलकर रख दूँ,
उसके सामने,
किताब-ए-दिल मगर,
रुसवा उसको करूँ,
ऐसी फितरत,
न हुई, न है, न होगी

#मुदित
क़रार का इक़रार, बेक़रार कर गया
इख्लास मेरा, मुझको तार-तार कर गया
वो ले गया मुझसे ही, मुक़म्मल सी इजाज़त
नीलाम फिर मुझे, सरे-बाज़ार कर गया
है इश्क़ भी इल्लत, मुझे ये इल्म ना हुआ
बेकस मुझे वो, बज़्म बे-गुलज़ार कर गया
ताउम्र तज़ुर्बों में तबाह, इश्क़ की बख्शीश
मुंसिफ भी बे-गुनाह को, गिरफ्तार कर गया
ये आब-ए-चश्म, दिल की खलिश, चाक जिगर के
मुफ़लिस को आसुदाह, बेशुमार कर गया

इख्लास=प्रेम
इल्लत=झंझट
बेकस=अकेला
बज़्म=महफ़िल
गुलज़ार=फूलदान
बख्शीश=ईनाम
मुंसिफ=जज, न्यायधीश
आब-ए-चश्म=आँख का पानी
खलिश=दर्द
चाक=दरारे
मुफ़लिस=गरीब
आसुदाह=अमीर, धनवान

#मुदित
चलो अच्छा है,
छुड़ा ही लिया उसने दामन,
अब न वो दिखावे की मुहब्बत,
न मिलने का इंतज़ार होगा,
न वो चेहरे पे झूँठी हँसी पहनकर,
निकलना होगा साँझ से मिलने,
रोज़मर्रा के कामों से,
कुछ लम्हे चुराकर,
न अब कभी इंतज़ार होगा
किसी मंज़िल का,

#मुदित
रात की,
बस चंद ही साँसे बाकी थी,
दिन की रौशनी,
अभी जागी नहीं थी,
और मैं,
बरसों की तरहा आज भी,
उसके तसव्वुर से बाहर आकर,
सो जाने की,
नाकाम सी कोशिश कर रहा था,
कब तलक,
जाने कब तलक चलता रहेगा,
हर जाते लम्हे की,
उंगली पकड़कर,
मिन्नते करने का ये सिलसिला,
जाने कब तलक

#मुदित
कुछ किस्से
आगे बढ़ ही नहीं पाते
अब सवाल ये है कि
ज़िम्मेदार कौन
क्या ये नज़रे
जिन्होंने गुस्ताखी की
पहला हर्फ़ लिखने की
या निश्चल मन
जिसे खबर ही नहीं होती
समाज के रीति-रिवाजों की
या इसके ठेकेदारों के
गूढ़ मंसूबों की
वैसे भी
जिसको परिभाषित किया जा सके
वो प्रेम कहाँ होता है
जो दिमाग से ताल्लुक रखता हो
वो प्रेम कहाँ होता है
प्रेम तो अजर, अमर,
अनंत और अज्ञात है
दूरियों और नजदीकियों से परे
एक अपनेपन का अहसास
शायद प्रेम का अपूर्ण होना ही
इसकी सार्थकता है
जैसे
राधा-माधव का अतुल्य प्रेम

#मुदित


काश,
ऐसी कोई रबर होती,
जो मिटा देती,
अतीत की लिखाई,
काश,
ऐसी कोई पेंसिल होती,
जो लिख देती,
मन चाहा मुक़द्दर,
तो लिख लेता नाम तेरा,
अपने नाम के साथ,
जन्म-जन्मांतर के लिए,
मगर,
कल्पनाएं सिर्फ कल्पनाएं होती हैं,
हक़ीक़त से इनका रिश्ता जुड़ना,
उतना ही मुश्किल है,
जितना कि समंदर में गिरी
बारिश की बूँद का,
दोबारा से अपना अस्तित्व खोजना

#मुदित 
निकल जाता हूँ आज भी अक्सर
बीती हुई गलियों में
खुद को ढूँढने
जबकि
लोग आगे की और दौड़ रहे हैं
और बस दौड़ते ही जा रहे हैं
आँख खुलने से
आँख बंद होने तक
अनवरत
एक अजीब सी दौड़ है
जाने कब शुरू हो जाती है
और कहाँ ख़त्म होती है
कोई नहीं जानता
शायद वृद्धावस्था तक
नहीं
शायद साँस के चलने तक
कहते हैं ये तरक्की की दौड़ है
जिसमे न कोई अपना
न अपनापन
न मिलने-चिलने का
वो दीवानापन
बस निकल जाते हैं आगे
गिरने वाले के कलेजे पे
पैर रखकर
मगर
मुझे आज तलक
इस दौड़ का हिस्सा बनना नहीं आया
इसीलिए
लोग आगे निकल जाते हैं
धक्का मारकर
और मैं आज भी पीछे
सबसे पीछे
इंतज़ार कर रहा हूँ
उस बीते वक़्त का
प्यार, वफ़ा, अपनेपन का वो वक़्त
शायद कभी तो खुद को दोहरायेगा

#मुदित
भूल जाऊँगा
थोड़ा वक़्त तो दे
साँस के ठहरने का इंतज़ार कर
वफ़ा की हर लौ बुझा दे
ख्वाबों का हर आईना तोड़ दे
बीते वक़्त की हर बात कुचल दे
या बस आँखों में आँखे डालकर
इतना कह दे
कि मेरी याद नहीं आती

#मुदित
अकेले आना,
अकेले जाना,
शायद यही, दस्तूर है ज़िन्दगी का,
जाने फिर क्यूँ,
जन्म-जन्मान्तर की,
कसम खाते हैं लोग,
रुख़ हवा का,
ज़रा सा जो बदला,
अक्सर नज़र,
बदल जाते हैं लोग
चमक चेहरे पे,
आ जाती है
उनके आने से,
या,
चेहरे की चमक को"
देखकर ही आते हैं लोग
दिल को अच्छाई का,
ज़रा सा जो रंग लगाओ तो
जमकर फायदा,
उठाते हैं लोग
फितरत "राही" की
क्यूँ बदले नहीं बदलती,
बदलते-बदलते यूँ तो,
बदल जाते हैं लोग

#मुदित
अँधेरी डगर में कहीं इक दिया...
यूँही साथ मुझको तेरा दे दिया...
क्या माँगू खुदा से मैं इसके सिवा...
फ़लक पे बशर को बैठा जो दिया..
खुदा साथ है ग़र मेरे साथ तू..
खुदा ने मुझे इक खुदा दे दिया..
तू मग़रिब और मशरिक का उनवान है...
मुझे जैसे इक हमनवा दे दिया...
नहीं हाथ उठते दुआ के लिए..
कि उसने मुझे बे-पनाह दे दिया...
घने जंगलों में भटकता है क्यूँ...
ऐ राही तुझे कारवां दे दिया...

जिस घर जाना नहीं,

अब भी उसी के रास्ते ढूंढता हूँ

जाने क्यूँ गर्द-ए-सफ़र ढूँढता हूँ,

जाने किस वास्ते ढूँढता हूँ

##मुदित 
जिस घर जाना नहीं,

अब भी उसी के रास्ते ढूंढता हूँ

जाने क्यूँ गर्द-ए-सफ़र ढूँढता हूँ,

जाने किस वास्ते ढूँढता हूँ

##मुदित 
पुरानी यादों के थैले में
कुछ या बहुत कुछ ग़ज़लें
पड़ी हुई थी
लिखी थी जो उसको
याद करके
सुबह देखा जो सवेरे
लड़ रही थी आपस में
अपनी बारी के इंतज़ार में
कब लोगों से मिलवाओगे हमे
कुछ इसी तरह के सवाल
माथे पे चिपकाये
बेताब सी, बेआब सी
हाल-ए-दिल मेरा
जैसे बयाँ करना चाहती हो
और
वाकिफ़ करा देना चाहती हो
ज़माने को
ग़म-ए-हिज़्र-ए-'राही' से

##मुदित 
ज़िन्दगी का खालीपन, कुछ इस तरहा वो भर गया
अपने ग़मों में अब बहुत, मसरूफ़ सा हूँ मैं......

मुदित 

Tanha bazm

इंसान में इंसान सी खुशबू जहाँ मिले
जन्नत का उस जगह से कोई रास्ता मिले
चेहरों पे ज़र्द हो चली मुस्कान बेवजह
हँसता हुआ चेहरा कोई तो बावजाह मिले
लौटा है बाद इक दौर के इस दौर में राही
कोई बशर इस दौर में उस दौर सा मिले
तनहाइयों का शोर बहुत बढ़ गया राही
अब राह में कोई पुरसुकूं सा काफिला मिले
जीवन तो जी लिया हूँ चलूँ मौत की जानिब
उससे भी गुफ्तगू हो कोई फ़लसफ़ा मिले
ज़ुल्मत अता करे मुझे चाहे खुदा जितनी
तेरी जुदाई का न कभी रास्ता मिले

#मुदित