Saturday, February 11, 2017

रात की,
बस चंद ही साँसे बाकी थी,
दिन की रौशनी,
अभी जागी नहीं थी,
और मैं,
बरसों की तरहा आज भी,
उसके तसव्वुर से बाहर आकर,
सो जाने की,
नाकाम सी कोशिश कर रहा था,
कब तलक,
जाने कब तलक चलता रहेगा,
हर जाते लम्हे की,
उंगली पकड़कर,
मिन्नते करने का ये सिलसिला,
जाने कब तलक

#मुदित

No comments:

Post a Comment