Saturday, February 11, 2017

क़रार का इक़रार, बेक़रार कर गया
इख्लास मेरा, मुझको तार-तार कर गया
वो ले गया मुझसे ही, मुक़म्मल सी इजाज़त
नीलाम फिर मुझे, सरे-बाज़ार कर गया
है इश्क़ भी इल्लत, मुझे ये इल्म ना हुआ
बेकस मुझे वो, बज़्म बे-गुलज़ार कर गया
ताउम्र तज़ुर्बों में तबाह, इश्क़ की बख्शीश
मुंसिफ भी बे-गुनाह को, गिरफ्तार कर गया
ये आब-ए-चश्म, दिल की खलिश, चाक जिगर के
मुफ़लिस को आसुदाह, बेशुमार कर गया

इख्लास=प्रेम
इल्लत=झंझट
बेकस=अकेला
बज़्म=महफ़िल
गुलज़ार=फूलदान
बख्शीश=ईनाम
मुंसिफ=जज, न्यायधीश
आब-ए-चश्म=आँख का पानी
खलिश=दर्द
चाक=दरारे
मुफ़लिस=गरीब
आसुदाह=अमीर, धनवान

#मुदित

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